नमस्कार दोस्तों आज की इस पोस्ट में हम आपको गोलू देवता की कहानी (Golu devta story in Hindi) बताने जा रहे हैं।
गोलू देवता न्याय के देवता। Golu devta story in Hindi
गोलू देवता को न्याय का देवता माना जाता है, और उन्हें उत्तराखंड राज्य के कुमाऊँ क्षेत्र में अपने ईस्ट देवता के रूप में पूजा जाता है। गोलू देवता या भगवान गोलू की प्रसिद्धि ना सिर्फ उत्तराखंड में ही है, बल्कि आज गोलू देवता के आशीर्वाद से देश-विदेश के लोगों की मनोकामना पूर्ति के बाद उनकी प्रसिद्धि विश्व विख्यात हो गई है।
लोग देश विदेश से आकर गोलू देवता के दरबार में अपनी मनोकामना मांगते हैं, और भगवान गोलू भी अपने भक्तों की मनोकामना पूर्ति कर उन्हें कभी निराश नहीं करते। कुमाऊँ क्षेत्र के अल्मोड़ा स्थित स्थान से मात्र आधे घंटे की दुरी पर भगवान गोलू का प्रख्यात चित्तई गोलू मंदिर अपने में एक अनोखा मंदिर है। यह घंटी वाले मंदिर के नाम से भी प्रचलित है।
यहाँ भगवान गोलू के सामने अपनी मनोकामना मांगने के लिए लोग अर्जी लगाते हैं। ऐसा माना जाता है, की गोलू देवता अपने भक्तो की अर्जी पढ़ते हैं, और उसी अनुसार उन्हें मनवांछित फल प्रदान करते हैं। एक बार जब भक्तों की मनोकामना पूरी हो जाती है, तो भेंट स्वरूप भक्त यहाँ पर घंटी चढ़ाते हैं, और इसी लिए यहाँ हजारों की संख्या में घंटियाँ लटकी दिखती हैं।
गोलू देवता को गौर भैरव (भगवान शिव) का अवतार माना जाता है, जो अपने भक्तों के बीच तुरंत न्याय देने के लिए प्रसिद्ध हैं। उनके प्रति भक्तों का अटूट विश्वास ही है, जो उन्हें दूर-दूर से यहाँ खींच लाता है, और लोग अपनी प्राथना, अपनी इच्छा या समस्या गोल्ज्यू के सामने प्रकट करते हैं, जिसका निदान होना पक्का है।
न्याय के देवता गोलू देव से जुड़ी एक लोककथा प्रचलित है, तो चलिए गोलू देवता की कहानी (Golu devta story in Hindi) जानते हैं, कैसे उनका जन्म हुवा, और क्यों उन्हें न्याय का देवता कहा जाता है।
गोलू देवता की कहानी। Golu devta story in Hindi
ऐतिहासिक रूप से उत्तराखंड के चंपावत क्षेत्र को गोलू देवता का जन्म स्थान माना जाता है। ऐसा कहा जाता है, की गोलू देवता (गोल्ज्यू) कत्यूरी राजा हालराई और कालिंका की एकलौती संतान थे।
हालराई की सात रानियाँ थी, लेकिन किसी से भी उन्हें संतान सुख की प्राप्ति नहीं हो सकी थी। राजा इस बात को लेकर काफी चिंतित रहते थे, तब उन्होंने अपने कुल देवता गौर भैरव की आराधना करि, ताकि उन्हें संतान की प्राप्ति हो सके।
राजा की आराधना से खुश होकर गौर भैरव ने उन्हें आशीर्वाद दिया और कहा की वे खुद राजा के घर पुत्र के रूप में जन्म लेंगे, लेकिन उनका जन्म राजा की सात रानियों से नहीं बल्कि संतान प्राप्ति के लिए राजा को आठवा विवाह करना होगा।
गौर भैरव के इतना कहने पर राजा बोले भगवन वो शौभाग्यशाली स्त्री कौन होगी, जिसके गर्व से आपका जन्म होगा। यह पूछने पर भगवान बोले आपका आठवा विवाह रानी कालिंगा से होगा जो दूसरे स्थानीय (पंचनाम) देवता की बहन हैं।
राजा हालराई निकले आठवीं रानी की तलाश में।
इसके बाद राजा हालराई रानी कालिंगा की तलाश में निकल पड़े, और इसी दौरान एक दिन जब वे घने जंगल से गुजर रहे थे, उन्हें एक तालाब नजर आया। दिन का समय था, वे प्यासे थे, अतः वे अपनी प्यास बुझाने के लिए तालाब की ओर चल दिए।
तालाब के निकट पहुँचने पर उन्होंने देखा की वहाँ एक स्त्री ध्यान में बैठी थीं, जिनका ध्यान अब भंग हो गया है। राजा तालाब से पानी लेने जा ही रहे थे की तभी उस स्त्री ने उन्हें पानी लेने से रोक दिया, और कहा की यह तालाब मेरा है, और बिना मेरी आज्ञा आप यहाँ से पानी नहीं ले सकते हैं।
राजा बोले “पानी नहीं ले सकता” में इस राज्य का राजा हालराई हूँ, और उस स्त्री से पूछा की देवी आप कौन हैं और इस घने वन में क्या कर रही हैं। उनके यह पूछने पर वह स्त्री बोलीं में पंचनाम देवों की बहन कालिंगा हूँ। यह कहकर उन्होंने राजा से उनके राजा होने का सबूत मांग लिया।
राजा जिसकी तलाश में निकले थे, वो उनके सामने थीं। राजा बोले देवी बताएं आपको मेरे राजा होने का क्या प्रमाण चाहिए। तभी वहीं पास में दो भैंसे लड़ रहे थे उन्हें देख स्त्री बोली यदि आप इन्हे अलग कर के दिखा दें तो में मान लुंगी की आप ही राजा हालराई हैं। राजा ने स्त्री की बात स्वीकार कर ली और वे दो लड़ते भेंसो को अलग करने की कोशिश करने लगे।
उन्होंने काफी देर कोशिश करि लेकिन वे असफल रहे। इसके बाद देवी कालिंगा ने स्वयं उन दो भैंसों को अलग कर उनकी लड़ाई समाप्त करवा दी। देवी कलिंगा की बहादुरी थता सुंदरता से राजा काफी प्रभावित हुवे अतः भगवान गौर भैरव के कहे अनुसार वे जल्द देवी कालिंगा से विवाह करना चाहते थे।
राजा हालराई की आठवीं रानी।
इसके लिए वे अपना विवाह प्रस्ताव लेकर पंचनाम देवों के पास पहुँचे और पंचनाम देवों ने राजा हालराई की प्रसिद्धि और महानता के बारे में पहले से सुना था अतः उन्होंने बिना देर करे अपनी बहन कालिंगा का हाथ राजा हालराई को सौंप दिया और कुछ ही समय बाद दोनों का विवाह हो गया।
अब देवी कालिंगा राजा हालराई की आठवीं रानी थीं और दोनों एक दूसरे के साथ अच्छा समय व्यतीति करने लगे। दूसरी सातों रानियों को कालिंगा का राजा के ज्यादा समीप होना पसंद नहीं आ रहा था, अतः वे सभी रानी कालिंगा से ईर्ष्या करने लगे। समय बीतता गया और दोनों के जीवन में वह शुभ घड़ी आ ही गई जिनका उन्हें इंतजार था, रानी कालिंगा अब गर्ववती हो गई थीं और यह बात जानकर राजा की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था।
रानी के गर्ववती होने की बात जब सातों रानियों तक पहुँची, तो ईर्ष्या से भरी रानिया व्याकुल हो उठीं। वे सोचने लगीं की यदि रानी कालिंगा ने संतान को जन्म दे दिया तो राजा उनसे अधिक प्यार करने लगेंगे और हमारी उपेक्षा होने लगेगी।
इसलिए सातों रानियों ने मिलकर योजना बनाई की वे किसी भी तरह से रानी के गर्व में पल रहे बच्चे का अंत कर देंगी। योजना अनुसार सातों रानियां राजा के समीप गईं और कहने लगीं की बड़ी मुश्किलों और मन्नतों के बाद हमें संतान सुख के प्राप्ति होने जा रही है, हम नहीं चाहते की बाहर से आकर कोई दाई बच्चे को जने और उससे कोई भूल चूक हो जाए।
इसलिए हम सातों बहने मिल कर रानी कालिंगा का ध्यान रखेंगी और बच्चे को जनने में रानी की मदद करेंगी। राजा बच्चे के जन्म से प्रसन्न थे अतः उन्होंने बिना ज्यादा सोचे सातों रानियों की बात पर हामी भर दी।
भगवान गोलू देवता का जन्म। Golu devta birth story in Hindi
सातों मिलकर रानी कालिंगा के कक्ष में पहुँची और दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। वे बोलीं बहन तुम्हारे प्रसूति का समय निकट आ गया है, क्योंकि तुम पहली बार माँ बनने जा रहीं हो तो कहीं प्रसूति के समय तुम मूर्छित ना हो जाओ अतः हम तुम्हारी आँखों में ये पट्टी बांध देते हैं, और इतना कहते ही उन्होंने रानी के आँखों में पट्टी बांध दी।
बच्चे को कोख में ही मारने के कई असफल प्रयासों के बाद भी जब एक सुन्दर से बालक (गोल्ज्यू) ने जन्म ले लिया, तो पहले से तैयार रानियों ने बच्चे को नीचे गोशाला में फेंक दिया ताकि जानवरों के पैरों तले दबकर बच्चे का अंत हो जाए, और एक खून से लतपत सिलबट्टा रानी कालिंगा की गोद में रख दिया और कहा की आपने बच्चा नहीं इस सिलबट्टे को जन्म दिया है।
नीचे गोशाला में पड़ा बच्चा जानवरों के बीच काफी समय तक रहा लेकिन बच्चे को एक खरोंच तक नहीं आई, यह देख सातों रानियों ने बच्चे को बिच्छू घास में डाल दिया लेकिन वहां भी बच्चे को किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुँचा।
हर स्तर पर असफल होने के बाद अंत में रानियों ने लौहार से एक मजबूत संदूक तैयार करवाया जिसमे हवा तक ना जा सके और बच्चे को उस संदूक में डाल दिया और ताला लगाकर संदूक को काली नदी में बहा दिया।
संदूक 7 दिन और 7 रातों तक नदी में बेहता रहा और संदूक में लेटा वह बच्चा बिना हवा, पानी थता प्रकाश के भूखा पड़ा रहा और संदूक बेहता हुवा गोरीघाट तक पहुँच गया। गोरीघाट में एक मछुवारा मछली पकड़ रहा था, तभी उसे लगा की उसके जाल में कोई बड़ी मछली फस गई है, और उसने फटाफट जाल खींचना शुरू कर दिया और देखा की वह तो एक संदूक है।
बालक पहुँचा मछुवारे के पास।
बिना देर करे मछुवारे ने संदूक खोला तो उसमे एक सुन्दर से बालक को लेटा हुवा पाया मछुवारा अपने साथ हुई इस घटना से दंग था, उसने फटाफट अपनी धर्म पत्नी को बुलाया और मछुवारे की पत्नी भी रूपवान बालक को देखकर हैरान थी।
मछुवारा निसंतान था, और बच्चे को देखकर दोनों के मन में बच्चे को पालने की इच्छा जाग्रत हुई, अतः वे भगवान का प्रसाद समझकर बच्चे को अपने घर ले आए। मछुवारे कि पत्नी ने जैसे ही बच्चे को अपने सीने से लगाया तो देखा की उसके स्तनों से दूध बहने लगा है।
पति-पत्नी इस चमत्कार को देखकर हैरान थे, और इसे भगवान की लीला मान रहे थे। कुछ ही समय बाद बच्चे का नामकरण हुवा और बच्चे के गोरीघाट स्थान पर मिलने पर उसका नाम गोरिया, गोलू रख दिया गया।
बालक के आने से मछुवारे का घर खुशियों से भर उठा, उसके सभी बिगड़े काम बनने लगे थे, यहाँ तक की पुरे गांव में अब खुशहाली का माहौल बन गया था, और गांव के सभी लोग बालक को भगवान का अवतार मानने लगे।
लोग बालक की सच्चाई से अनजान थे, अतः वे सोचते थे की एक गरीब निर्धन मछुवारे के घर यह चमत्कारी बालक कैसे जन्म ले सकता है, जिसका रंग दूध की तरह सफ़ेद है, और चहरे पर किसी राज्य के राजकुमार की तरह तेज है, क्योंकि लोग नहीं जानते थे की बालक हालराई के पुत्र और राज्य के राजकुमार हैं।
बालक को आने लगे सपने।
समय बीतता गया और वह बालक अब बड़ा होने लगा था। एक दिन बालक को अपने जन्म और अपने माता-पिता का सपना आया की किस तरह से उनका जन्म हुवा था, उनके माता पिता कौन हैं, थता कैसे उनकी सौतेली माओं ने उन्हें संदूक में बंद कर नदी में बहा दिया था।
जब अपने सपने के बारे में बालक ने मछुवारे को बताया तो मछुवारा बालक से दूर हो जाने के डर से कहता है, की वो ही उसके माता-पिता हैं। बालक को अब अपने गौर-भैरव अवतार थता अपनी शक्तियों का अहसास होने लगा था और एक दिन बालक मछुवारे से अपने लिए एक घोड़ा लाने की जिद्द करने लगा।
मछुवारा बालक को असल घोड़ा देने में सक्षम नहीं था अतः उसने काठ के कारीगर को बुला कर बालक के लिए एक काठ का घोड़ा बनवा दिया। काठ के घोड़े को पाकर गोल्जू बहुत प्रसन्न हुवे और प्रतिदिन उस घोड़े की सवारी कर उससे खेलने लगे।
बालक गया राजधानी की तरफ।
एक दिन वे अपने काठ के घोड़े को लेकर राजधानी की तरफ चल पड़े। राजधानी के पास ही वह तालाब था, जहाँ पर राजा की वो सातों रानियां स्नान करने आती थीं। रानियों के समीप जाकर बालक अपने काठ के घोड़े को पानी पिलाने लगे।
सातों रानियों का ध्यान बालक की ओर गया और वे बोलीं अरे बालक तुम काठ के घोड़े को पानी पीला रहे हो, भला काठ का घोड़ा भी कहीं पानी पी सकता है क्या और वे बालक पर हँसने लगीं।
बालक रानियों को तुरंत उत्तर देते हुवे बोला की जब इस राज्य में रानी कालिंगा एक सिलबट्टे को जन्म दे सकतीं हैं, तो मेरा काठ का घोड़ा भी पानी पी सकता है। बालक ने इतना बोला ही था की सातों रानियाँ उसकी बात सुनकर हैरान रह गईं। यह बात किसी तरह राजा हालराई तक पहुँच चुकी थी, अतः उन्होंने बालक को अपने पास बुलाया और पूछने लगे की बालक आप कैसे एक काठ के घोड़े को पानी पिला सकते हैं।
उस बालक ने अपनी कही हुई बात राजा के सामने एक बार फिर से दोहराई और राजा को अपने अतीत के बारे में सब कुछ बता दिया। उन्होंने बताया की किस तरह से सातों रानियों ने उनकी माँ कालिंगा के साथ अत्याचार किया था, और किस तरह से उन्हें मारने का प्रयाश किया गया और संदूक में बंद कर काली गंगा में बहा दिया गया। साथ ही बालक ने राजा को भगवान भैरव से प्राप्त उनके वरदान के बारे में भी बताया जो बात सिर्फ राजा जानते थे।
बालक की पूरी बात जानकार राजा बहुत दुखी हुवे, उन्होंने बालक को गले लगाकर उसे अपना पुत्र स्वीकार कर लिया और सातों रानियों को जेल की सलाखों के पीछे डालने का हुक्म दे दिया गया।
अंतिम शब्द।
लेकिन गोलू देवता (गोल्ज्यू) न्याय के देवता हैं, अतः उन्होंने अपने पिता से सातों रानियों को माफ़ कर देने के लिए कहा और उनकी बात मानते हुए राजा ने सातों रानियों को रिहा कर दिया। अपने पिता के बाद गोलू देव ने ही राज्य का पदभार संभाला। उनके सही निर्णय और लोगों को तुरंत न्याय दिलाने के कारण ही उन्हें न्याय का देवता कहा जाने लगा।
Golu devta story in Hindi
दोस्तों आपने भगवान गोलू देवता की यह कहानी पढ़ी और उनके जन्म के बारे में पढ़ा की किस प्रकार उनका जन्म हुवा, कैसे उनका संघर्षपूर्ण बचपन बीता थता क्यों उन्हें न्याय का देवता कहा जाता है।
इस पोस्ट में हमने बिलकुल सरल शब्दों और शंक्षेप में गोल्ज्यू के जीवन के बारे में बताने का प्रयाश किया है। गोलू देवता की कहानी (Golu dev story in Hindi)