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होली का इतिहास क्या है। History of Holi in Hindi | होली क्यों मनाते हैं।

नमस्कार दोस्तों आज हम आपको होली के इतिहास (History of Holi in Hindi) के बारे में बताएंगे। 

होली भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह रंगो का पावन पर्व है, जब चारों ओर रंग गुलाल, गुजियां और रंग लगे लोगों के खिलखिलाते चेहरे नजर आते हैं। होली का यह त्यौहार कौन नहीं जानता है, बच्चे, जवान या फिर बूढ़े सभी होली के रंग में रंगना पसंद करते हैं।

रंगो के त्यौहार होली के इस पावन पर्व को बसंत ऋतू के आगमन पर मनाया जाता है, जब प्रकृति तरह-तरह के फूल-पत्तियों और रंगो से सराबोर होने लगती है। सर्दियों और गर्मियों के बीच के खुशनुमा मौसम में होली का यह पर्व मनाया जाता है, इसी लिए होली के इस त्यौहार को वसंतोत्सव भी कहा जाता है। हिंदू पंचांग अनुसार होली के पावन पर्व को फाल्गुन महीने की पूर्णिमा को मनाया जाता है।  

होली प्राचीनतम हिंदू त्योहारों में से एक है, और होली से जुड़े ऐसे कई प्रमाण भी मिले हैं, जिनके अनुसार इसा मसीह के जन्म से भी कई वर्ष पहले से होली का यह त्यौहार मनाया जाता रहा है। होली का वर्णन जैमिनी के पूर्वमीमांसा सूत्र थता कथक गृहय सूत्र में भी मिलता है, साथ ही होली से जुड़ी कई मूर्तियां थता आकृतियां भारत के प्राचीन मंदिरों में मिली हैं।   

लेकिन क्या आप जानते हैं, होली का इतिहास क्या है। History of Holi in Hindi और हम होली क्यों मनाते हैं, यदि नहीं तो चलिए आपको Holi ki history बताते हैं। 

होली का इतिहास। History of Holi in Hindi

हमारे देश भारत में मनाए जाने वाले सभी मुख्य त्योहारों के पीछे किसी न किसी प्रकार की कथा या धार्मिक मान्यता जुड़ी होती है, ठीक इसी प्रकार रंगो के त्यौहार होली के पीछे भी कुछ प्रसिद्ध धार्मिक कथाएं जुड़ी हैं।  

इन धार्मिक मान्यताओं का अनुसरण लोग वर्षों से करते आए हैं, और इसी लिए हर वर्ष हर्षोउल्लास के साथ होली के इस रंग भरे त्यौहार को मनाया जाता है।

इतिहास। History of Holi

होली पर्व का इतिहास वर्षो पुराना है, जिसके आरंभ की जानकारी भागवत पुराण में मिल जाती है। भागवत पुराण अनुसार हिरण्यकश्यप नामक एक बलसाली असुर राजा था, जिसने तपस्या कर ब्रह्मा जी से एक विशेष वरदान प्राप्त कर लिया था।

प्राप्त वरदान अनुसार हिरण्यकश्यप को ना कोई इंसान मार सकता था और ना कोई जानवर, उसकी मृत्यु ना किसी अस्त्र या शस्त्र से हो सकती थी, ना वो घर के बाहर मर सकता था और ना घर के भीतर, ना वो दिन में मरेगा ना रात को, ना धरती में और ना आकाश में उसकी मृत्यु हो सकती थी। 

इस वरदान की प्राप्ति के बाद हिरणकश्यप के अंदर अहंकार आ गया था और वह खुद को ही भगवान समझने लगा था। उसका कहना था की लोग उसे भगवान का दर्जा दें और भगवान के बजाय उसकी पूजा करें और यदि उसके राज्य के लोग ऐसा नहीं करते थे, तो वो उनपर अत्याचार करता था। 

विष्णु भक्त प्रहलाद।

हिरण्यकश्यप का एक पुत्र था जिनका नाम प्रहलाद था। प्रहलाद अपने पिता की इस बात को नहीं मानते थे और वे भगवान विष्णु की पूजा करते थे। अपने पुत्र को भगवान विष्णु की पूजा करने से रोकने के लिए हिरण्यकश्यप ने कई प्रयास किये लेकिन हर बार वो प्रहलाद को रोकने में असफल रहा।

बार-बार प्रहलाद की विष्णु भक्ति को रोकने में असफल होने के बाद अंत में हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को मारने का फैसला लिया और इसके लिए उसने अपनी बहन होलिका की सहायता ली। होलिका को भगवान शिव द्वारा एक वरदान प्राप्त था, जिसमे उसे एक ऐसा वस्त्र मिला था , जिसे ओढ़ने पर अग्नि (आग) से उसे कोई भी नुकसान नहीं पहुँच सकता था।

अतः हिरणकश्यप ने होलिका से प्रहलाद को लेकर जलती हुई भयानक आग में बैठने को कहा ताकि वरदान से प्राप्त वस्त्र से होलिका तो बच जाए लेकिन विष्णु भक्त प्रहलाद जल कर भस्म हो जाए।

लेकिन सब उनकी सोच के उलट हुवा क्योंकि होलिका को यह नहीं पता था, की भगवान शिव द्वारा प्राप्त अद्भुत वस्त्र तभी उसकी रक्षा करेगा जब वह अकेली आग में जाएगी और किसी निर्दोष का जीवन छीनने के लिए इसका उपयोग नहीं किया जाएगा। 

होलिका का अंत।

प्रहलाद अपनी आँखे बंद कर निरंतर भगवान विष्णु का जाप करने लगे और होलिका प्रहलाद संग जैसे ही जलती हुई भयानक आग में बैठी तो उसका वह वस्त्र उसके तन से अलग हो गया और वह जल कर राख हो गई।

वहीँ दूसरी ओर प्रहलाद पर भगवान विष्णु की कृपा दृष्टि हुई और आग से उन्हें किसी भी प्रकार का नुकसान नहीं पहुँचा। इसके बाद भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लेकर हिरणकश्यप का वध कर दिया था।  

तभी से हिरण्यकश्यप के वध और होलिका के नाम से जुड़ा होली का यह त्यौहार मनाया जाता है, जो की हमें बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देता है, और इसी लिए होली से एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है, अगले दिन रंगवाली होली (धूलहंडी) मनाई जाती है।

होलिका दहन पर लोग कई दिन पहले से ही लकड़ियां और घासपूस एक स्थान पर इखट्टा कर के रखते हैं, और होली से ठीक एक दिन पहले लकड़ियों के ढेर में आग लगाकर इसे होलिका दहन के रूप में मनाया जाता है। उसके अगले दिन घरों में तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं और रंगो संग होली मनाकर अपने दोस्तों-दुशमनो सभी को रंग लगाया जाता है, और खुशी प्रकट की जाती है।

अंतिम शब्द।

दोस्तों आपने होली के इतिहास के बारे में पढ़ा (History of Holi in hindi) और जाना की हम होली क्यों मनाते हैं। हमें उम्मीद है, हमारे द्वारा दी गई यह जानकारी आपको अच्छी लगी होगी। यदि जानकारी अच्छी लगी है, तो इसे दूसरों के साथ जरूर शेयर करें। 

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