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जालंधर की कहानी

जालंधर की कहानी | शिवपुत्र जालंधर की उत्पत्ति कैसे हुई | Jalandhar story in hindi

नमस्कार दोस्तों आज की इस पोस्ट में हम आपको जालंधर की कहानी बताने जा रहे हैं। इसमें आप आसान शब्दों में जानेंगे जालंधर कौन था, शिव पुत्र जालंधर की उतपत्ति कैसे हुई थी और साथ ही जानेंगे की जालंधर का वध कैसे हुवा और किसने किया था।

जालंधर की कहानी। Jalandhar story in Hindi

शास्त्रों अनुसार एक बार जब देवराज इंद्र और देवगुरु बृहस्पति भगवान शिव से मिलने कैलाश पर्वत की ओर जा रहे थे, तो मार्ग में उन्हें एक बूढ़े जोगी ने रोक लिया। वह कोई आम जोगी नहीं था बल्कि जोगी के भेष में स्वयं भगवान शिव थे। शिव जी ने यह भेष इंद्र और बृहस्पति की परीक्षा लेने के लिए धारण किया था। 

देवगुरु बृहस्पति को तो इस बात का आभास हो गया था, की यह कोई आम जोगी नहीं है, अतः वे चुप रहे, लेकिन देवराज इंद्र इस बात से अनजान थे। तो इंद्र ने जोगी से पूछा की आप कौन हैं, कहाँ रहते हैं और यहाँ क्या कर रहे हैं।

इंद्र की इस बात का जोगी ने कोई जवाब नहीं दिया, इंद्र ने एक बार फिर से अपनी बात को दोहराया, लेकिन तब भी जोगी की तरफ से उन्हें कोई जवाब नहीं मिला। 

इंद्र को जोगी पर क्रोध आने लगा, इंद्र सोचने लगे की एक सामान्य सा जोगी कैसे उनका रास्ता रोक सकता है, और क्यों वह उनके पूछने पर भी कोई जवाब नहीं दे रहा है, और उनके रास्ते से भी नहीं हट रहा है। तो इस बात से क्रोधित होकर अंत में इंद्र ने अपना वज्र निकाल लिया और योगी को धमकाते हुवे उस पर वज्र से प्रहार कर दिया।    

शिव का क्रोध। (जालंधर की कहानी)

इंद्र की इस हरकत पर योगी भेष में मौजूद भगवान शिव क्रोधित हो गए, उनकी आंखे लाल होने लगी और क्रोधित होकर उन्होंने अपना तीसरा नेत्र खोल लिया। देखते ही देखते इंद्र का वज्र निष्क्रिय हो गया।

इंद्र अब समझ चुके थे की यह कोई आम जोगी नहीं बल्कि साक्षात भगवान शिव हैं, जिनके क्रोध से बचना अब मुश्किल है, वे घबराने लगे और भगवान शिव के सामने क्षमा याचना करने लगे।  ऐसे में देवगुरु बृहस्पति ने भी भगवान शिव से क्षमा याचना करि, के है प्रभु इंद्र को क्षमा कर दीजिये, क्योंकि ये आपको नहीं पेहचान सके।

शिव ने देवगुरु बृहस्पति की क्षमा याचना मान ली और अपने तीसरे नेत्र से उठी क्रोधागिनी जिससे वे इंद्र को भष्म करना चाहते थे, उस अग्नि को समुंद्र में डाल दिया।

जालंधर का जन्म कैसे हुवा।

यह घटना उस स्थान की है, जहाँ पवित्र गंगा नदी समुंद्र में जाकर मिलती है, जिसे आज गंगासागर के नाम से जाना जाता है। 

समुंद्र में गिरी क्रोधागिनी ने एक बालक का रूप ले लिया और वह बालक दहाड़े मारते हुवे चीख-चीख कर रोने लगा जिसकी आवाज ब्रह्मांड में चारों ओर सुनाई देने लगी। बच्चे के रोने की आवाज इतनी तेज थी, की इसे सुन सभी देवी-देवता और साधु परेशान होने लगे और सभी मिलकर अपनी जिज्ञासा को दूर करने के लिए ब्रह्मा जी के पास गए। ब्रह्मा जी ने भी सभी को विश्वास दिलाया और कहा की वे जल्द ही इसका पता लगा लेंगे। 

अब ब्रह्मा जी को बालक का पता लगाना था, तो वे अपने निवास स्थान से उठकर आवाज के सहारे समुंद्र के पास पहुँच गए। समुंद्र ने बालक को ब्रह्मा जी के गोद में रख दिया और उसके नामकरण की बात कही।

बालक अपनी तीव्र आवाज की तरह खुद भी काफी शक्तिशाली था, उसने ब्रह्मा जी की गर्दन पकड़ ली, बालक की पकड़ इतनी मजबूत थी की पीड़ा से ब्रह्मा जी के आंसू निकल गए।  इसी कारण ब्रह्मा जी ने उस बालक का नाम जालंधर रखा और समुंद्र से कहाँ की यह बालक एक शक्तिशाली असुर सम्राट बनेगा जिसे एक मात्र भगवान शिव ही पराजित कर सकेंगे।

यह कह कर ब्रह्मा जी थता बाकि सभी देव गण अपने-अपने निवास स्थानों की ओर लोट गए। अब समुंद्र बालक की देख-भाल करने लगा। 

जालंधर का वृंदा से विवाह।

युवा अवस्था का होने पर जालंधर का विवाह दैत्य राजा कालनेमि की पुत्री वृंदा के साथ हुवा। वृंदा एक पतिव्रता नारी थी, जो अपने पति धर्म को सबसे ऊपर रखती थी। वृंदा के पतिव्रता धर्म के कारण ही देवी-देवताओं के लिए भी जालंधर को परास्त करना संभव नहीं था। सही रूप से जालंधर के शक्तिशाली होने का सबसे बड़ा कारण उसकी पतिव्रता पत्नी वृंदा थी। 

लगातार मिलती जीत और अपनी शक्ति के अहंकार में चूर जालंधर ने देवताओं पर आक्रमण करना शुरू कर दिया था और वह उनकी स्त्रियों से भी दुर्व्यवहार करने लगा। वह तीनों लोकों में अपना आधिपत्य स्थापित करना चाहता था और सर्वशक्तिमान बनना चाहता था।

उसने सबसे पहले इंद्र को परास्त किया जिसके बाद वह बैकुंठ पर आक्रमण करके लक्ष्मी जी को प्राप्त करना चाहता था, लेकिन लक्ष्मी जी ने उसे समझाया और कहा की हम दोनों ही समुंद्र से उत्पन्न हुवे हैं, अतः रिश्ते में हम दोनों भाई-बहन हैं। जिसके बाद वह लक्ष्मी जी को अपनी बहन मानकर वहाँ से चला गया। 

जालंधर और भगवान शिव के बीच युद्ध।

बैकुंठ से वापस लौटने के बाद जालंधर एक दिन अपनी सभा में बैठा था और तभी वहाँ नारद जी आ गए। जालंधर ने नारद जी का स्वागत-सत्कार किया जिससे नारद जी काफी खुश हुवे।  नारद बोले जालंधर तुम्हारा एस्वर्य देखते ही बनता है, तुम्हारे पास सब कुछ है, तुम सर्वशक्तिमान हो तुम्हे हराना किसी के लिए भी आसान नहीं है। 

बस तुम्हारे पास एक चीज की कमी है, जालंधर बोला कमी किस चीज की कमी है, मेरे पास तो सब कुछ है। तब नारद जी जालंधर के सम्मुख कैलाश पर्वत की भव्यता थता माता पार्वती की खूबसूरती का बखान करने लगे और कहने लगे की कैलाश की भव्यता के सामने यहाँ कुछ भी नहीं और माता पार्वती एक सर्व गुण संपन्न स्त्री हैं, जिनकी खूबसूरती देखते ही बनती है। 

जालंधर अब नारद जी के बहकावे में आकर माता पार्वती को प्राप्त करने की सोचने लगा। अतः थोड़ा समय बीत जाने के बाद उसने अपनी असुर सेना को कैलाश पर आक्रमण करने का आदेश दे दिया। जिसके बाद असुरों और शिव गणों के बीच भयंकर युद्ध छिड़ गया। 

असुर शिव गणों पर हावी होने लगे, तब माता पार्वती ने ध्यान मुद्रा में बैठे महादेव से युद्ध में जाने का आग्रह किया। भगवान शिव के युद्ध में आने के बाद शिव गणों के बीच एक अलग ऊर्जा का संचार होने लगा और वे भी असुरों को टक्कर देने लगे। भगवान शिव और जालंधर के बीच भयंकर युद्ध होने लगा लेकिन शिव के हर वार को जालंधर कड़ी टक्कर दे रहा था। 

विष्णु जी का छल।

दूसरी ओर विष्णु जी जानते थे की जालंधर को हराना इतना आसान नहीं है, क्योंकि जालंधर की शक्ति का मुख्य कारण उसकी पतिव्रता पत्नी वृंदा है। अतः विष्णु जी ने अपनी माया के बल पर जालंधर का भेष धारण किया और वृंदा के पास चले गए। 

वृंदा को लगा की उसके पति जालंधर युद्ध से लौटकर आ गए हैं, अतः वृंदा भगवान विष्णु को अपना पति मान कर उनके साथ पत्नी जैसा व्यवहार करने लगी और इस तरह से वृंदा का पतिव्रता धर्म टूट गया। 

यहाँ वृंदा का पतिव्रता धर्म टूटा और वहाँ युद्ध में भगवान शिव ने अपने त्रिशूल से जालंधर का वध कर दिया।

कुछ समय साथ रहने के बाद एक दिन वृंदा को आभास हो गया की वो जिसे अपना पति मान रही है, वो भगवान विष्णु है। तब वृंदा ने भगवान विष्णु को पत्थर बन जाने का श्राप दिया और खुद आत्मदाह कर लिया। 

तुलसी विवाह की कहानी

अंतिम शब्द।

तो दोस्तों आपने जालंधर की कहानी पढ़ी, कैसे जालंधर का जन्म हुवा, किस प्रकार उसने तीनों लोकों में जीत प्राप्त करि, उसकी शक्ति का क्या कारण था और अंत में किस तरह से भगवान शिव ने जालंधर का वध किया।

उम्मीद है, जालंधर की यह कहानी आपको अच्छी लगी होगी, क्योंकि हमने इसे बिलकुल सरल शब्दों में बताने की कोशिश की है। 

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