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Jesus ki kahani

जीसस की कहानी। Jesus ki kahani | jesus christ ki kahani|

Introduction (Jesus christ ki kahani)

हैलो दोस्तों आज हम आपको Jesus christ ki kahani बताने जा रहे हैं। jesus ki kahani एक अद्भुत कहानी है, जिसे पढ़कर आपको Jesus के जन्म, उनके जीवन थता मृत्यु के बारे में काफी जानकारी मिलेगी। 

Jesus जिन्हे jesus christ या ईसामसीह के नाम से पुकारा जाता है, वे ईसाई धर्म के संस्थापक थे, उन्होंने लोगों को प्रेम, दया और दूसरों को माफ़ कर देने का पाठ पढ़ाया था। ईसाई धर्म के अनुयायिओं द्वारा उन्हें ईश्वर के अवतार के रूप में पूजा जाता है। 

जैसे की हम सभी जानते हैं, कि दिसंबर का महीना ईसाई धर्म के मानने वालों के लिए एक पवित्र महीना है, जब 25 दिसंबर को क्रिसमस के रूप में उनके प्रभु इसा मसीह का जन्म दिवस मनाया जाता है।

क्रिसमस यानि (Christ का दिन) इसे ईसाई धर्म में बड़ा दिन कहा जाता है, जब उनके ईश्वर प्रभु इसा मसीह का जन्म हुवा था। तो चलिए विस्तार में जीसस के जन्म, जीवन और उनकी मृत्यु यानि जीसस की कहानी को जानते हैं। 

जीसस का जन्म। (Jesus ki kahani)

आज से लगभग 2000 साल पूर्व उत्तरी इसराईल में गलीलिया शेहर के नाज़ेरथ (Nazareth) कसबे की रहने वाली एक युवा महिला मरियम (Mary) के पास ईश्वर ने एक देवदूत Gabriel को भेजा। मरियम जोकी एक युवा महिला थी उनकी सगाई युसूफ नाम के बड़ई से हो चुकी थी और कुछ समय बाद उन दोनों की शादी होने वाली थी। 

उस देवदूत ने मरियम से कहा की आप बहुत भाग्यशाली हैं, आपको प्रभु का आशीर्वाद मिला है। आप एक पवित्र आत्मा के द्वारा गर्व धारण करोगी और आपके गर्व से एक पुत्र का जन्म होगा जिसे आप यीशु के नाम से पुकारोगी और वह ईश्वर का अपना पुत्र होगा।

मैरी यह सब सुनकर थोड़ा घबराई क्योंकि उन्हें यकीन नहीं हो पा रहा था की बिना शादी के वह कैसे गर्ववती हो सकती हैं, लेकिन अंत में मैरी ने उस देवदूत से कहा की जैसी प्रभु की इच्छा होगी वैसा ही होगा। 

जब मैरी ने यह सब बात अपने होने वाले पति युसूफ को बताई तो यह सब सुनकर युसूफ थोड़ा सोच में पड़ गया और सोचने लगा की ये कैसे हो सकता है, उसे मैरी पर यकीन नहीं हो रहा था और मैरी के चरित्र की चिंता हो रही थी। 

लेकिन इसके कुछ समय बाद जब वह देवदूत (गेब्रियल) युसूफ के सपने में आया और उसने युसूफ को भी वह पूरी बात बताई की मैरी ने प्रभु के आशीर्वाद से गर्व धारण किया है, और जल्द ही वो एक पुत्र को जन्म देगी, जिसका नाम यीशु होगा।

वह एक ऐसा राजा बनेगा जिसके साम्राज्य की कोई सीमा नहीं होगी। वह लोगों को उनके गुनाहों से आजाद कराएगा, और युसूफ से कहा की वो मैरी का त्याग ना करे और उससे शादी कर ले। अब यह बात युसूफ के समझ में आ गई थी और वह मैरी से शादी करने के लिए राजी हो गया और जल्द ही मैरी और युसूफ की शादी हो गई। 

मैरी अब गर्ववती थी और दोनों पति-पत्नी अपना जीवन यापन कर रहे थे, उस समय वह क्षेत्र रोमन साम्राज्य का हिस्सा था और रोमन सम्राट आगस्टस के आदेशानुसार वहाँ जनगड़ना होने वाली थी। जिसके लिए हर एक नागरिक को अपने मूल निवास स्थान पर लौटने को कहा गया था। 

इसके लिए मैरी थता युसूफ को बैथेलहम जाना पड़ा और कई दिनों के सफर के बाद वे वहाँ पहुँच गए। क्योंकि मैरी गर्ववती थीं तो उन्हें जल्द ही आवास की आवश्यकता थी लेकिन बैथेलहम में काफी भीड़ थी और दूर-दूर से लोग आए हुवे थे, जिसके कारण वहाँ सभी धर्मशालायें थता रुकने के स्थान भरे हुवे थे।

काफी पता करने के बाद जब रहने का कोई स्थान नहीं मिल पा रहा था, तभी एक आवास के मालिक ने देखा की मैरी गर्ववती हैं और बच्चे को जन्म देने वाली हैं, तो उसने युसूफ थता मैरी को अपने अस्तबल में रहने का विकल्प दिया और अस्तबल के भीतर ही जानवरों के बीच आधी रात को प्रभु यीशु (Jesus) का जन्म हुवा था।

बैथेलहम के बाहर मौजूद चरवाहे जब आधी रात को अपनी भेड़ों की रखवाली कर रहे थे, तभी उनके सामने एक आश्चर्यजनक घटना हुई। कहा जाता है, की देवदूत वहाँ खुद प्रकट हुवे जिसे देखकर वे चरवाहे डर से काँपने लगे। 

देवदूत ने उनसे कहा डरो मत में आपको एक शुभ समाचार देने आया हूँ। आज बैथेलहम में एक मुक्तिदाता ने जन्म लिया है, वो आपका रखवाला हैं और वो आपको जानवरों के अस्तबल में मिलेंगे।

यह सब सुनते ही सभी चरवाहे यीशु को देखने के लिए निकल पड़े और देखते ही देखते वहाँ लोगो की भीड़ लगने लगी। यह खबर चारों तरफ फैल गई और लोग दूर-दूर से वहाँ उपहारों के साथ पहुँचने लगे। सभी प्रभु यीशु को एक झलक देखना चाहते थे, और सभी का मानना था की यीशु ईश्वर का पुत्र है, जिसका जन्म पृथवी पर लोगों के कल्याण के लिए हुवा है।  

जीसस का जीवन और ज्ञान की प्राप्ति।

जीसस के शुरुवाती जीवन की बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। कहा जाता है, की जब जीसस 12 वर्ष की आयु के थे, तब वे अपने माता-पिता के साथ तीर्थ यात्रा पर जेरुसलम गए थे, जहाँ वे उनसे अलग हो गए और कई दिन बीत जाने के बाद एक मंदिर में कुछ बुजुर्गों के संग संवाद करते पाए गए। वहाँ लोग जीसस को सुनना चाहते थे, उनसे सवाल पूछ रहे थे, और उनसे काफी प्रभावित भी थे।  

यह भी कहा जाता है, की जीसस अपने पिता के व्यवसाय से जुड़ गए और लगभग 29 वर्ष की आयु तक उस कार्य से जुड़े रहे। 30 वर्ष की आयु में उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई उसी दौरान वे उपवास थता ध्यान के लिए 40 दिनों तक रेगिस्तान में रहे। घ्यान थता ज्ञान प्राप्ति में बाद उन्होंने इसराइल की जनता के बीच यहूदी घर्म का प्रचार करना शुरू कर दिया था। लोग उन्हें सुनने लगे थे, उनके उपदेसो को सुनने के लिए लोगों की भीड़ लग जाती थी।  

उनका कहना था की, ईश्वर एक है, वह सभी से प्यार करता है, हम सभी ईश्वर की संतान हैं, साथ ही उनका मानना था की लोगों को उनके किये गए पापों के लिए माफ़ किया जाना चाहिए।

जीसस ने अपने जीवन काल में कई चमत्कार किये, उन्होंने बीमार को स्वस्थ कर दिया, अंधे को आँखे दे दी, गूंगे बोलने लगे और यहाँ तक कहा जाता है की उन्होंने मरे हुवे को भी जिंदा कर दिया था। उनका स्पष्ट रूप से कहना था की वे ईश्वर के पुत्र हैं, उन्हें देखना या ईश्वर को देख लेना एक बराबर है, उनके बताए हुवे मार्ग को अपनाकर ही मुक्ति प्राप्त की जा सकती है।  

जीसस की मृत्यु। Jesus ki kahani

Jesus द्वारा खुद को ईश्वर का पुत्र बताने और उनके दिए जाने वाले उपदेशों से कई लोग सहमत नहीं थे। उनमे आम व्यक्ति, धर्मगुरु और कट्टरपंथी लोग शामिल थे, जो जीसस का भारी विरोध करते थे। उन के लिए खुद को ईश्वर का पुत्र बताना या खुद को ईश्वर कहना अपराध था, यानि उन्हें जीसस में मसीहा जैसे कुछ भी नहीं लगता था। धर्गुरूओं को अपने कर्मकांडो से प्रेम था वे नहीं चाहते थे की लोग किसी दूसरे के विचारों को अपनायें। 

इस लिए विरोधियों ने ईश्वर की निंदा करने के आरोप में जीसस की शिकायत उस वक्त के रोमन गवर्नर पिलातुस से कर दी, जिसके बाद जीसस को दर्दनाक मोत की सजा सुना दी गई। उन्हें सार्वजनिक रूप में कोड़ों से मारा गया, उन पर थूका गया और उन्हें कटीली तारों का बना ताज पहना दिया गया।

अंत में उनके हाथों और पैरों पर कील ठोक के भरी भीड़ के सामने उन्हें क्रूस पर लटका दिया गया। यह रोमन सरकार का पहले से चला आ रहा तरीका था जिसमे वे अपराधी को यातनायें देकर क्रूस पर लटका दिया करते थे। 

जबतक की जीसस साँसे बंद नहीं हुई, तब तक उन्हें क्रूस पर लटका छोड़ दिए गया और अंत में उनके शव को उतार कर उन्हें कब्र में दफना दिया गया। जीसस की मृत्यु शुक्रवार के दिन हुई थी। 

उनकी कब्र की रखवाली दिन-रात रोमन सैनिकों द्वारा की जाती थी, लेकिन जीसस के कहे अनुसार तीन दिन बाद वह कब्र खाली मिली वहाँ उनका शरीर नहीं था बस एक सफ़ेद चादर पड़ी मिली। बाईबिल अनुसार मृत्यु के तीन दिन बाद जीसस पुनः जीवित हो गए थे, जिस घटना को आज ईस्टर के रूप में मनाया जाता है, और अप्रैल के महीने में शुक्रवार को गुड फ्राइडे यानि शोक दिवस के रूप में मनाया जाता है। 

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अंतिम शब्द

दोस्तों आपने jesus christ के जन्म, जीवन थता उनकी मृत्यु के बारे में पढ़ा। उनके दिए उपदेशों की जानकारी भी ली की किस प्रकार वे लोगों को आपस में प्रेम भावना के साथ रहने को कहा करते थे। 

उनके उपदेशो का अनुसरण लोगों द्वारा आज भी किया जाता है। आपको भी जीसस की कही हुई बातों को अपने जीवन में उतारना चाहिए और अच्छे और सच्चे रास्ते पर चलना चाहिए। उम्मीद है jesus ki kahani से आपको उनके व्यक्तित्व, जीवन और संघर्ष की जानकारी प्राप्त हो गई होगी। 

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