नमस्कार दोस्तों आज हम आपको उत्तराखंड राज्य के परंपरागत त्योहारों में से एक फूल देइ त्यौहार के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं। इसमें आप जानेगे फूल देइ त्यौहार क्या है, यह कब और क्यों मनाया जाता है। Phool dei festival in Hindi
उत्तराखंड अपनी हसीन वादियों के लिए दुनियाभर में मशहूर है, जहाँ बर्फ की चादर ओढ़े ऊँचा हिमालय खड़ा है, हरे-भरे बांज के जगलों व पर्वतों की मौजूदगी हैं, बहती नदियों, झीलों, तालों और घास के मैदानों की सुंदरता यहाँ देखते ही बनती है।
उत्तराखंड राज्य अपने अंदर ना सिर्फ प्राकर्तिक सुंदरता को समेटे हुवे है, बल्कि यहाँ के लोग और त्यौहार भी उतने ही खूबसूरत हैं। राज्य के कई परंपरागत त्यहारों में से एक फूल देइ -छम्मा देइ त्यौहार भी है, आइये इसके बारे में जानते हैं।
फूल देइ-छम्मा देइ त्यौहार कब और क्यों मनाया जाता है। Phool dei festival in Hindi
फूल देइ त्यौहार नए साल के आगमन की पेहचान है, यह चैत्र महीने की संक्रांति को मनाया जाता है। चैत्र महीने की संक्रांति जिसे हिन्दू परंपरओं के अनुसार नए साल का पहला दिन माना जाता है।
उत्तराखंड निवासियों के लिए चैत्र का महीना एक पावन महीना है, जिसके प्रारंभ होते ही पहाड़ों में चारों तरफ रंग-बिरंगे फूल खिल जाते हैं। सर्दी और गर्मी के बीच का यह मौसम फ्योली, बुरांश, खुमानी, आड़ू के लाल, पीले, गुलाबी फूलों से पर्वतों की सुंदरंता को और अधिक बढ़ा देते हैं, जब चारों तरफ रंग-बिरंगे फूल और हरयाली बिखर जाती है।
Phool dei का यह त्यौहार नई ऋतू, नए फूलों के आने का संदेश देता है, जब दूर पहाड़ों में बर्फ पिघलने लगती है, सर्दियों के कठिन दिन समाप्त हो जाते हैं, नए फूल पत्तों के उगने से वातावरण में एक नई ताजगी और खुशहाली छा जाती है, तो प्रकर्ति की इस नई भेठ को धन्यवाद करने के लिए Phool dei का यह पावन पर्व मनाया जाता है। फूल देइ के इस त्यौहार को फूल सक्रांति के नाम से भी पुकारा जाता है।
फूल देइ -छम्मा देइ त्यौहार कैसे मनाया जाता है।
फूल देइ बसंत ऋतू के आने पर प्रकृति को आभार प्रकट करने का पर्व है। यह पर्व मुख्य रूप से बच्चों द्वारा मनाया जाता है और पहाड़ के बच्चों के बीच बहुत ही लोकप्रिय है।
इस दिन घर के बड़े सुबह जल्दी उठ कर घर की सफाई कर अपनी दहलीज को परंपरागत ऐपण कला से सजा देते हैं, थता बच्चे जल्दी उठकर खेतों और जंगल में उगे रंग-बिरंगे फ्योली, बुरांश, भिटोर थता खुमानी, आडू के फूलों को रिंगाल (एक प्रकार के लकड़ी) की टोकरी में इखट्टा करते हैं।
पर्याप्त मात्रा में फूलों को इखट्टा करने के बाद घर पर लाया जाता है, और सर्वप्रथम उन्हें अपने देवी-देवताओं को अर्पित किया जाता है। इसके बाद बच्चे गाँव के हर घर में जाते हैं, जहाँ उनका इंतजार घर के बड़े कर रहे होते हैं।
बच्चे गाँव के हर घर में जाकर घर की दहलीज पर उन इखट्टा किए गए फूलों को बिखेरते हैं, और उस घर की खुशहाली की मंगलकामना करते हैं, जिसमे मंगलकामना को गीत के रूप में कुछ इस प्रकार गाया जाता है।
फूलदेइ….छम्मा देइ,
देंणी द्वार…. भर भकार,
यो देइ…..सो नमस्कार
पूजे द्वार…. बारम्बार।
इसका अर्थ है , यह देहलीज फूलों से भरपूर और मंगलकारी हो, सबकी रक्षा करे थता घर में अन्न के भंडार भरे रहें।
इसके बाद घर के मालिक द्वारा बच्चों को भेटं स्वरूप गुड़, चावल थता कुछ पैसे दिए जाते हैं, जिससे बच्चों की प्रसन्नता देखते ही बनती है। इस दिन घर पर पारंपरिक पकवान बनाए जाते हैं, जिन्हे अपने आस पड़ोस में बाँटा जाता है। फूल देइ का यह पावन पर्व हरयाली और खुशहाली का प्रतीत है, और यह बच्चों को प्रकृति के प्रति जागरूक करता है। दोस्तों हमें उम्मीद है, फूल-देइ, छम्मा-देइ त्यौहार से जुड़ी यह जानकारी आपको अच्छी लगी होगी।
हरेला पर्व क्या है, यह क्यों मनाया जाता है।
Phool dei festival in Hindi