जैसे की हम सभी जानते हैं, की ब्रह्मा जी ने ब्रह्मांड की रचना की थी, और ज्ञान की देवी माता सरस्वती को अपने मुख से उदित किया था, ताकि प्राणियों में ज्ञान की उत्पत्ति हो सके, और बिना ज्ञान के प्राणियों का कोई अस्तित्व भी नहीं है। तो ज्ञान की देवी माँ सरस्वती की प्रतिदिन आराधना करनी चाहिए, सरस्वती वंदना आरती का पाठ करना चाहिए ताकि आपको सद्बुद्धि मिले और आपके ज्ञान में वृद्धि हो सके।
माता सरस्वती को ज्ञान, रचनात्मकता और संगीत की देवी कहा जाता है, यह हिन्दू धर्म की तीन प्रमुख देवियों में से एक हैं, माता लक्ष्मी, माता पार्वती और माता सरस्वती, इन्हे साथ में त्रिदेवी भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है, की माता सरस्वती का भजन-पूजन करने से मुर्ख व्यक्ति भी ज्ञानी बन जाता है, उसे बुद्धि की प्राप्ति हो जाती है, और दिनों-दिन उसकी विद्या और वैभव में वृद्धि होने लगती है।
सरस्वती नाम संस्कृत मूल “सरस” से जन्मा है, और उनका व्यक्तित्व शांत और केंद्रित है, माता सरस्वती का वाहन सफेद हंस है, और कमल का फूल उनका आसान है, उनके दोनों हाथों में विणा है, और बाकि दो हाथों में पुस्तक तथा माला है।
वैसे तो पुरे वर्ष माँ सरस्वती का पूजन किया जाता है, देश भर में अनेकों स्कूल, कॉलेजों में सुबह की शुरुवात सरस्वती वंदना से की जाती है, लेकिन बसंत पंचमी के दिन सरस्वती पूजा को खास महत्व दिया जाता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है, की बसंत पंचमी के दिन ही माता सरस्वती का अवतरण हुवा था, इस दिन लोग बढ़ चढ़कर पूरी विधि-विधान के साथ माता सरस्वती की पूजा करते हैं।
बसंत पंचमी का यह त्यौहार शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को देश भर में बड़ी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है, इस दिन लोग प्रातः जल्दी उठकर सबसे पहले स्नान करते हैं, और पीले वस्त्र धारण करते हैं, और फिर माँ सरस्वती की मूर्ति का श्रृंगार कर पूजा की तैयारी की जाती है।
माँ सरस्वती की पूजा की बात की जाए और सरस्वती वंदना और आरती की बात ना हो ऐसा कैसे हो सकता है, सरस्वती वंदना का पाठ खास तोर पर प्रातः के समय अनेकों शैक्षिक सस्थानों में किया जाता है, क्योंकी ऐसा माना जाता है, की इसके उच्चारण से ज्ञान की प्राप्ति होती है, और अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित रहता है। तो चलिए अब माँ सरस्वती की वंदना करते हैं, और साथ ही उसके अर्थ को भी समझते हैं।
सरस्वती वंदना आरती
सरस्वती वंदना करने से पूर्व माता सरस्वती की मूर्ति या चित्र को सामने रखें और फिर उनके स्वरुप का ध्यान कर उनकी वंदना करें।
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभि र्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेष जाड्यापहा॥
शुक्लां ब्रह्मविचारसारपरमांद्यां जगद्व्यापनीं।
वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यांधकारपहाम्।।
हस्ते स्फाटिक मालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्।
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्।।
सरस्वती वंदना अर्थ :-
जो विद्या देवी कुंद के फूल, शीतल चन्द्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह श्वेत वर्ण की है, जिन्होंने श्वेत वर्ण के वस्त्र धारण किये हुए है, जिनके हाथ में वीणा शोभायमान है, और जो श्वेत कमल पर विराजती हैं, तथा ब्रह्मा, विष्णु और महेश और सभी देवता जिनकी नित्य वन्दना करते है, वही अज्ञान के अंधकार को दूर करने वाली माँ भगवती हमारी रक्षा करें।
शुक्ल वर्ण वाली, सम्पूर्ण चराचर जगत मे व्याप्त ,आदिशक्त परब्रह्म के विषय में किए गये विचार एंव चिंतन के सार रूप परम उत्कर्ष को धारण करने वाली ,सभी भयों से अभयदान देने वाली ,अज्ञान के अंधकार को मिटाने वाली, हाथों में वीणा-पुस्तक और स्फटिक की माला धारण करने वाली , पद्मासन पर विराजमान ,बुद्धि प्रदान करने वाली सर्वोच्च एश्वर्य से अलंकृत , भगवती शारदा की मैं वन्दना करता हूँ।
माँ सरस्वती जी की आरती
जय सरस्वती माता,
मैया जय सरस्वती माता,
सद्गुण वैभव शालिनी,
त्रिभुवन विख्याता।
चंद्रवदनि पद्मासिनी,
ध्रुति मंगलकारी।
सोहे शुभ हंस सवारी,
अतुल तेजधारी।
जय जय सरस्वती माता।
बाएं कर में वीणा,
दाएं कर में माला।
शीश मुकुट मणी सोहें,
गल मोतियन माला।
जय जय सरस्वती माता।
देवी शरण जो आएं,
उनका उद्धार किया।
पैठी मंथरा दासी,
रावण संहार किया।
जय जय सरस्वती माता।
विद्या ज्ञान प्रदायिनी,
ज्ञान प्रकाश भरो।
मोह, अज्ञान, तिमिर का
जग से नाश करो ॥
जय जय सरस्वती माता।
धूप, दीप, फल, मेवा
मां स्वीकार करो।
ज्ञानचक्षु दे माता,
जग निस्तार करो,
जय जय सरस्वती माता।
मां सरस्वती की आरती
जो कोई जन गावें।
हितकारी, सुखकारी,
ज्ञान भक्ती पावें।
जय जय सरस्वती माता।
जय सरस्वती माता,
जय जय सरस्वती माता।
सद्गुण वैभव शालिनी,
त्रिभुवन विख्याता।
जय जय सरस्वती माता।
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